The Greatest Guide To Shodashi
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ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ऐ ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं सौः: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
सर्वाशा-परि-पूरके परि-लसद्-देव्या पुरेश्या युतं
हस्ते पङ्केरुहाभे सरससरसिजं बिभ्रती लोकमाता
यदक्षरैकमात्रेऽपि संसिद्धे स्पर्द्धते नरः ।
This mantra is an invocation to Tripura Sundari, the deity remaining resolved in this mantra. It's really a request for her to satisfy all auspicious wants and bestow blessings upon the practitioner.
चक्रेऽन्तर्दश-कोणकेऽति-विमले नाम्ना च रक्षा-करे ।
सर्वज्ञादिभिरिनदु-कान्ति-धवला कालाभिरारक्षिते
सा नित्यं नादरूपा त्रिभुवनजननी मोदमाविष्करोतु ॥२॥
Devotees of Shodashi engage in various spiritual disciplines that goal to harmonize the thoughts and senses, aligning them With all the divine consciousness. The subsequent factors outline the progression toward Moksha through devotion to Shodashi:
श्रीचक्रान्तर्निषण्णा गुहवरजननी दुष्टहन्त्री वरेण्या
हंसोऽहंमन्त्रराज्ञी हरिहयवरदा हादिमन्त्रार्थरूपा ।
श्रीगुहान्वयसौवर्णदीपिका दिशतु श्रियम् ॥१७॥
षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – here shodashi stotram
यदक्षरशशिज्योत्स्नामण्डितं भुवनत्रयम् ।